भिटहा स्थित “चतुर्वेदी विला” में चल रही नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन रुक्मिणी विवाह के बाद श्रीकृष्ण के वियोग में गोपियों के विरह की कथा सुन निश्छल प्रेम में डूबे भक्त
मुख्य यजमान चंद्रावती देवी के नेतृत्व में जनार्दन चतुर्वेदी, जय चौबे, डा उदय प्रताप चतुर्वेदी, राकेश चतुर्वेदी, रत्नेश चतुर्वेदी, डा सत्यम, दिवयेश और रजत ने उतारी कथा व्यास की आरती
कथा से पूर्व गणेश पांडेय, नीलमणि, बद्री प्रसाद यादव, ब्रह्म शंकर भारती सहित तमाम गणमान्य लोगों को कथा वाचक का मिला आशीर्वाद

जीवात्मा और परमात्मा का पावन मिलन और सिद्ध योगियों की लीला ही महारास कहलाती है। यह काम के पराभव की भी लीला है उक्त विचार वृंदावन धाम से पधारे कथा व्यास त्रिभुवन दास जी महाराज ने भिटहा स्थित “चतुर्वेदी विला” में चल रही नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन मंगलवार को कथा के दौरान व्यक्त किया। मुख्य यजमान चंद्रावती देवी के नेतृत्व में जनार्दन चतुर्वेदी, पूर्व विधायक दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे, सूर्या ग्रुप के चेयरमैन डा उदय प्रताप चतुर्वेदी, पूर्व प्रमुख राकेश चतुर्वेदी, रत्नेश चतुर्वेदी, दिवयेश चतुर्वेदी, डा सत्यम चतुर्वेदी, रजत चतुर्वेदी ने कथा पीठ की आरती और कथा व्यास का तिलक किया। कथा व्यास श्री दास जी महाराज ने कहा कि गोपियों संग श्रीकृष्ण की रास लीलाओं का श्रृंगार रस में वर्णन करते हुए कहा कि वासना व प्रेम का बाहरी रूप एक जैसा ही दिखाई पड़ता है, इसलिए महारास के विषय में भ्रम होता है। प्रेम में स्वसुख की अपेक्षा नहीं होती। प्रियतम को सुख पहुंचाना ही प्रेमास्पद का मूल भाव है । कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए त्रिभुवन दास जी महाराज ने कहा कि भगवान ने पृथ्वी पर पाप का अंत करने के लिए कंस का वध किया। आतंक का समन ही कंस वध है। इसके बाद जगत को शिक्षा देने के लिए गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण की। 48 कोस के दिव्य क्षेत्र में विश्वकर्मा भगवान को बुलाकर द्वारिका की स्थापना कराया। कथा के छठे दिन हुए भगवान के विवाह की पौराणिक महत्ता को परिभाषित करते हुए कथा व्यास ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने 16 हजार एक सौ आठ कन्याओं से विवाह किया। असल में 16 हजार एक सौ आठ वेद ऋचाएं भी हैं। वेद ऋचाओ की व्याख्या करते हुए श्री दास जी महाराज ने कहा कि वेद में तीन कांड और एक लाख मन्त्र है। पहला कर्मकांड, दूसरा उपासना कांड और तीसरा ज्ञान कांड कहलाता है। कर्मकांड में 80 हजार मंत्र आते हैं यह ब्रह्मचारियों के लिए निहित है। उपासना कांड में 16 हजार मंत्र आते हैं यह गृहस्थों के लिए है। ज्ञानकांड में 4 हजार मंत्र आते हैं यह बानप्रस्थ के लिए नियत है ।उपासना कांड के ही मंत्र गृहस्थो की वेद ऋचाएं है जो ब्रह्म स्पर्श पाने के लिए ही कन्याओं के रूप में अवतरित हुई हैं। जो भगवान के अंस में मिलकर अपने मूल तत्व में समाहित हुई । कथा में व्यास जी आगे कहते हैं कि उद्धव जी पत्र लेकर नंद गाव पहुंचते हैं और देखते हैं कि कृष्ण की बिरह में गोपियां अपना सुध बुध खो बैठी हैं उद्धव ज्ञानमार्गी हैं इन्हें अपने ज्ञान पर अभिमान था लेकिन भगवान के प्रति गोपियों के निश्चल प्रेम को देख वे उसी भक्ति में लीन हो गए। स्व पंडित सूर्य नारायण चतुर्वेदी की स्मृति में चल रही नौ दिवसीय कथा के दौरान सविता चतुर्वेदी, शिखा चतुर्वेदी, जिला पंचायत अध्यक्ष बलिराम यादव, पूर्व विधान सभा प्रत्याशी नीलमणि, पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष बद्री प्रसाद यादव, महामंत्री गणेश पांडेय, निहाल चंद्र पांडेय, वेद प्रकाश पांडेय, पवन पांडेय, ब्रह्म शंकर भारती, मनोज कुमार पांडेय, मायाराम पाठक, दिग्विजय यादव, जय प्रकाश यादव सहित सैकड़ों श्रोता मौजूद रहे।
