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माता पिता और गुरु ही आज के समाज में जीते जागते भगवान के स्वरूप हैं – त्रिभुवन दास जी महाराज

भिटहा स्थित “चतुर्वेदी विला” में चल रही नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन उमड़ी भक्तों की भीड़
स्व पंडित सूर्य नारायण चतुर्वेदी की स्मृति में आयोजित होती है श्रीमद् भागवत कथा
मुख्य यजमान चंद्रावती देवी के नेतृत्व में पूर्व विधायक जय चौबे, डा उदय प्रताप चतुर्वेदी, राकेश चतुर्वेदी, दिव्येश चतुर्वेदी और रजत ने आचार्यों को अंग वस्त्र किया भेंट

संतकबीरनगर जिले के दक्षिणांचल में स्थित भिटहा में स्थित “चतुर्वेदी विला” में चल रही नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को भक्तों की अपार भीड़ नजर आई। मुख्य यजमान चंद्रावती देवी के नेतृत्व में पूर्व विधायक दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे, सूर्या ग्रुप के चेयरमैन डा उदय प्रताप चतुर्वेदी, एसआर के एमडी राकेश चतुर्वेदी, दिव्येश चतुर्वेदी और रजत चतुर्वेदी ने कथा व्यास की आरती करके विद्व जनों में अंग वस्त्र वितरित किया। त्रिभुवन दास जी महाराज ने कहा कि आज के परिवेश में माता पिता और गुरु ही भगवान के जीते जागते स्वरूप हैं। इनकी सेवा किए बिना भगवान की सच्ची भक्ति असंभव है। भागवत पुराण भी हमें यही सीख देता है। कथा वाचक ने श्रीमद् भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राजा परीक्षित को उनके पूर्वजों ने सुकुमार जीवन में ही यह सीख दिया था कि यदि शत्रु भी आप की शरण में आ जाए तो उसे माफ कर देना। ऐसे में जब राजा परीक्षित राज्य भ्रमण पर निकले तो उन्हें ईश्वर स्वरूप में एक बैल घायल अवस्था में मिला। जिसके स्वरूप का जब राजा परीक्षित ने कारण पूछा तो बैल स्वरूप ने नियति और अपनी किस्मत को जिम्मेदार बता कर खुद को हालात के भरोसे छोड़ने का निवेदन किया। त्रिभुवन दास जी महाराज की कथा के अनुसार जैसे ही राजा परीक्षित आगे बढ़े एक दैत्य रूपी राक्षस ने कटार से उक्त बैल पर हमला करने का प्रयास किया। जिसे देख राजा ने उक्त राक्षस पर अपनी तलवार से प्रतिरोध करने के लिए तलवार निकाल लिया। जैसे ही राक्षस ने खुद की जान को खतरे में देखा तो राजा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। हमलावर के माफी मांगने पर राजा ने उसे माफ करते हुए उसका परिचय पूछा तो उसने खुद को कलियुग बताते हुए राजा से उनके राज में शरण देने का निवेदन किया। पूर्वजों की शिक्षा को सिर माथे लेते हुए राजा ने कलियुग को माफ करते हुए उसे अपने राज्य में शरण देने का फैसला किया। त्रिभुवन दास जी महाराज के अनुसार उसी समय कलियुग का मानव जीवन में वास कायम हो गया। कथा के दौरान मुख्य यजमान चंद्रावती देवी, गोमती प्रसाद चतुर्वेदी, सविता चतुर्वेदी, शिखा चतुर्वेदी, जिला पंचायत अध्यक्ष बलिराम यादव, मयाराम पाठक, अभयानंद सिंह, आनंद ओझा, दिग्विजय यादव, अनिल मिश्र सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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